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यु॒योप॒ नाभि॒रुप॑रस्या॒योः प्र पूर्वा॑भिस्तिरते॒ राष्टि॒ शूर॑:। अ॒ञ्ज॒सी कु॑लि॒शी वी॒रप॑त्नी॒ पयो॑ हिन्वा॒ना उ॒दभि॑र्भरन्ते ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yuyopa nābhir uparasyāyoḥ pra pūrvābhis tirate rāṣṭi śūraḥ | añjasī kuliśī vīrapatnī payo hinvānā udabhir bharante ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यु॒योप॑। नाभिः॑। उप॑रस्य। आ॒योः। प्र। पूर्वा॑भिः। ति॒र॒ते॒। राष्टि॑। शूरः॑। अ॒ञ्ज॒सी। कु॒लि॒शी। वी॒रऽप॑त्नी। पयः॑। हि॒न्वा॒नाः। उ॒दऽभिः॑। भ॒र॒न्ते॒ ॥ १.१०४.४

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:104» मन्त्र:4 | अष्टक:1» अध्याय:7» वर्ग:18» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:15» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे कैसे वर्ताव वर्त्तें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - जब (शूरः) निडर शत्रुओं का मारनेवाला शूरवीर (प्र, पूर्वाभिः) प्रजाजनों के साथ (तिरते) राज्य का यथावत् न्याय कर पार होता और (राष्टि) उस राज्य में प्रकाशित होता है तब (आयोः) प्राप्त होने योग्य (उपरस्य) मेघ की (नाभिः) बन्धन चारों ओर से घुमड़ी हुई बादलों की दवन (युयोप) सबको मोहित करती है अर्थात् राजधर्म से प्रजासुख के लिये जलवर्षा भी होती है वह थोड़ी नहीं किन्तु (अञ्जसी) प्रसिद्ध (कुलिशी) जो सूर्य के किरणरूपी वज्र से सब प्रकार रही हुई अर्थात् सूर्य के विकट आतप से सूखने से बची हुई (वीरपत्नी) बड़ी-बड़ी नदी जिनसे बड़ा वीर समुद्र ही है वे (पयः) जल को (हिन्वानाः) हिड़ोलती हुई (उदभिः) जलों से (भरन्ते) भर जाती हैं ॥ ४ ॥
भावार्थभाषाः - अच्छे राज्य से सब सुख प्रजा में होता है और विना अच्छे राज्य के दुःख और दुर्भिक्ष आदि उपद्रव होते हैं, इससे वीरपुरुषों को चाहिये कि रीति से राज्य पालन करें ॥ ४ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तौ कथं वर्त्तेयातामित्युपदिश्यते ।

अन्वय:

यदा शूरः प्रपूर्वाभिस्तिरते राज्यं संतरति तत्र राष्टि प्रकाशते तदायोरुपरस्य नाभिर्युयोप सा न न्यूना किन्त्वञ्जसी कुलिशी वीरपत्नी नद्यः पयो हिन्वाना उदभिर्भरन्ते ॥ ४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (युयोप) युप्यति विमोहं करोति (नाभिः) बन्धनमिव (उपरस्य) मेघस्य। उपर इति मेघना०। निघं० १। १०। (आयोः) प्राप्तुं योग्यस्य। छन्दसीणः। उ० १। २। (प्र) (पूर्वाभिः) प्रजाभिस्सह (तिरते) प्लवते सन्तरति वा। अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदम्। विकरणव्यत्ययेन शश्च। (राष्टि) राजते। अत्र विकरणस्य लुक्। (शूरः) निर्भयेन शत्रूणां हिंसिता (अञ्जसी) प्रसिद्धा (कुलिशी) कुलिशेन वज्रेणाभिरक्ष्या (वीरपत्नी) वीरः पतिर्यस्याः सा (पयः) जलम् (हिन्वानाः) प्रीतिकारिका नद्यः (उदभिः) उदकैः (भरन्ते) पुष्यन्ति। अत्र पक्षेऽन्तर्गतो ण्यर्थः ॥ ४ ॥
भावार्थभाषाः - सुराज्येन सर्वसुखं प्रजासु भवति सुराज्येन विना दुःखं दुर्भिक्षं च भवति। अतो वीरपुरुषेण रीत्या राज्यपालनं कर्त्तव्यमिति ॥ ४ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - चांगल्या राज्यात प्रजा सुखी असते व चांगले राज्य नसेल तर राज्यात दुःख व दुर्भिक्ष इत्यादी उत्पन्न होतात. यामुळे वीर पुरुषांनी योग्य पद्धतीने राज्य करावे. ॥ ४ ॥